
हरिद्वार में नील पर्वत माला और गंगा की तलहटी में स्थित मां काली के इस पवित्र मन्दिर की सिद्धपीठ के रूप में मान्यता है, इस मंदिर के समीप गंगा दक्षिण की तरफ बहती है. इसलिए इस मंदिर को दक्षिण काली मंदिर कहते है. ! ब्रह्मकुंड के पास बने मां काली के इस धाम की गाथा स्कंध पुराण में भी मिलती है. माना जाता है कि काल भैरव इस पीठ की स्वयं रक्षा करते है. कहते है दुनिया में जितने भी वाम मार्गी, दक्षिण मार्गी तंत्र साधना के साधक है वो जब तक सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर नहीं जाएंगे. तब तक उनकी साधना अधूरी रहेगी.
मां काली के इस चमत्कारिक धाम को लेकर कई कथाएं मिलती है. जो सिद्धपुरुष कामराज से जुड़ती है. इसीलिए मां का ये धाम कामराज पीठ, अमरा गुरु और दक्षिण काली के नाम से भी जाना जाता है. कथा कहती है कि इसी स्थान पर कामराज जी ने मां काली से साक्षात्कार किया था. कथा कहती है कि इस मंदिर की स्थापना कामराज गुरु ने मां काली के आदेश पर किया था. मां काली ने कामराज को स्वप्न दिया कि इस मंदिर की स्थापना मेरी इच्छा से करो. मां ने कहा कि इस मंदिर की स्थापना 108 नर मुंडों से होगी. तो कामराज ने कहा कि मैं 108 नरमुंड कहा से लाऊंगा. तब मां कालिका ने कहा कि ये महामशान है, यहां पर आने वाले मुर्दो को तुम जीवित करो. जब वो जीवित हो जाएं तो उनकी इच्छा से 108 नरमुंडों की बलि दो. कहते है कि इस तरह से इस दक्षिण काली मंदिर की स्थापना हुई. कथा कहती है कि इस गंगातट के कजरीवन में मां काली की प्रतिमा कहां से आई. ये कोई नहीं जानता. यहां माता की प्रतिमा लाखों साल से है..जो स्वयंभू है. गंगातट पर बना मां काली का दिव्य धाम, जहां भोलेनाथ के हलाहल विषपान की कथा जुड़ती है. जिससे गंगा की पावन धारा नीली हो गई और कजरीवन का ये क्षेत्र नीलधारा कहलाया.